सभ्यता का अंतिम चरण
यही है
यही
कि जब मनुष्य मनुष्य को
पशु समझे
उसकी चीर फाड़ कर
उसकी चमड़ी को निकले
उससे जूता, बैग और
बेल्ट बना ले
सभ्यता का अंतिम चरण
यही है
यही
कि जब
देह को व्यापार में
सबसे कीमती वस्तु
समझा जाये
उसकी खरीद के लिए
बोलियां लगाई जाये
और देह को पका कर
देह उसे खा ले
सभ्यता का अंतिम चरण
यही है
यही
कि जब
पुत्र पिता के समक्ष
कागज़ी महल बना ले
उसमे गुलदान, पायदान
पीकदान सब कुछ हो
मगर
एक कदम भर जगह भी
पिता को न मिले
सभ्यता का अंतिम चरण
यही है
यही
कि जब
पुस्तकों में लिखी बातें
पुस्तकों तक ही रह जाये
कलम और दवात
बस याद भर बन जायें
कोई ज़ेहन
किसी विशन से
मुक्त न रहे
सभ्यता का अंतिम चरण
यही है